Mahabharata short story
कुरुक्षेत्र युद्ध के कुछ वर्षों के बाद द्रौपदी बेचैन बैठी थी। हस्तिनापुर में कई अनाथ हो गए थे। इसे देखते – देखते द्रौपदी का मन अक्सर चंचल हो रहा था। एक दिन श्रीकृष्ण द्रौपदी के यहां गए। उन्हें देखकर द्रौपदी रोती हुई उनके यहां आई। श्रीकृष्ण उसके सिर पर हाथ रखकर उसे शांत किया।

श्रीकृष्ण धीरे – धीरे उसे समझाया। ” ‘काल’, हमारी मर्जी से नहीं चलती। उसे किसी का भी लापरवाही है। तुम्हें दुर्योधन और कौरवों से बदला लेना था और वे सब युद्ध भूमि में ही प्राण-त्याग कर दिए। तुम्हें तो इस पर तुष्ट होना चाहिए था। लेकिन तुम इतना उदास क्यों हो??”। श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुनकर द्रौपदी ने कहा,” आप मेरे घाव पर मरहम पट्टी बांधने आए हैं या इस पर नमक छिड़कने आए हैं ???”
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को हकीकत समझाने आए थे। उन्होंने कहा, ” पांचाली! सोच-समझकर करने वाले काम का नतीजा बेहतर होगा। लेकिन जल्द-बाज में करने वाले कुछ गलतियों का असर कभी भी हमें बड़ी मुसीबत में डाल देती हैं। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से पूछा, ” मैं ने ऐसा कौन-सा गलती किया??” श्रीकृष्ण ने कहा” यदि तुम अपनी स्वयंवर में कर्ण को भाग लेने देती, शायद, कुंती की आदेश के अनुसार पंच-पांडवों को अपने पतियों के रूप में स्वीकार नहीं की होती, दुर्योधन को अंधा कहकर उसका मजाक नहीं की होती। हमारे हर एक लापरवाही का नतीजा कभी – कभी बहुत बड़ी संकट में हमें डाल देती है। इसका नतीजा सिर्फ तुम ही नहीं तुम्हारे साथ आस – पास के हाल को भी सर्वनाश कर देती है। हमारे दांतों में विष नहीं है फिर भी बातों में विष होनेवाले एक ही जानवर मनुष्य है। इसलिए बातों का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। ”
महाभारत से हमें मिलनेवाला सुझाव। बातों का सही प्रयोग। जय श्री कृष्ण।🙏🙏🙏🙏🙏
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